वंदना
हे माॅ ,
मुझ अकिंचन पर दया कर
ज्ञान का प्रसार दो ,
राग , द्वेष से उन्मुक्त कर ,
भाव का विस्तार दो ।
मधुर तारों से अपनी वीणा के ,
कोमल भावों को मेरे ह्रदय के
झंकृत निरंतर करती रहो ।
हे माॅ ,
कभी बीज अहमन्यता का
ह्रदय में न विकसित हो ,
क्योंकि मेरा , मेरा कुछ नहीं है
जो भी है , वह सब तुम्हारा है ।
तुम आलोकित करो ज्ञानपथ
कोमलता विस्तृत करो भावजगत की
बतलाती रहो कर्म के विभिन्न रूपों को ।
हे माॅ ,
यदि कहीं हो जाये त्रुटि कोई ,
न कमी करना अपनी उदारता
में कभी
ढाॅके रहना मुझे हमेशा
अपनी शारदीय आभा से ,
हे माॅ ,
विनती है यही ।
By:
Dr. Abha Tiwari
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