मौंन
ये खूबसूरत ,गहरी ,अपने अंदर युगों से एक इतिहास को देखते, सुनते हुए
कितना कुछ अपने अंदर समेटे हुए
दर्द ,पीड़ा, जंग, उल्लास, प्रेम
धैर्य की सीमा से परे
फिर भी मौन खड़े हुए
सिखा रही हो जैसे
संपन्नता ,उम्मीद, धैर्य ,शुरुआत
एक नए दौर की
एक नए अध्याय की
सीखा है जिससे हमने
‘धरती’ जिसे मां कहां है हमने
मेरी पहली शिक्षिका
मेरी जननी ,मेरा अंतर्मन
मैं बनी ही इसी मिट्टी से
और खत्म भी इसी मिट्टी में
धैर्य की सीमा से परे
फिर भी मौन खडे हुए
इस कविता की लेखिका को बधाइयां…