कुछ तो है जो छूट गया है
क्या है जो छूट गया है
कौन है जो रूठ गया है
हर एक सिरे को पकड़ कर रखा है ,फिर भी
बार-बार उड़ती हूं ,
तिनका -तिनका जोड़ती हूं
पर ये रास्ते हैं कि खत्म ही नहीं होते
कदम उठाती हूं ,और रास्ते बनते चले जाते हैं
डर मुझे भी लगता है ,कहीं ये फासले बढ़ ना जाए
मैंने देखा है अपनों को अपनों से रूठते हुए
मेरे आशियाने में बहुत से चिराग है
उजाला तो बहुत है ,पर रोशनी खो गई है
हर एक सिरे में गांठ लगा रखी है
कहीं छूटे भी तो टूट न पाए
पर कोई तो है जो खो सा गया है
कुछ तो है जो छूट गया है