पावस
घहर-घहर घिर आई घटाएं,
श्याम-श्वेत आभा निखरी।
गगन ने श्रम से एकत्रित किए,
तूल के ढेर कई;
चपला बालिका सी पवन
उनमें से कुछ उड़ा ले गई।
निज धन की हानि होते देख,
गगन के अश्रु-बिंदु
वेदना के साथ बह निकले।
झरोखे से झांक सूरज
हौले से मुस्कुरा दिया।
मंद-मंद सुरभि ने
बुन दिया ताना-बाना
और धरा-वधू का मन-मयूर
नृत्य कर उठा।
प्रतीक्षा समाप्त हुई,
आ गई पावस बेला।
Written by: Dr. Shobha Tiwari
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Thanks for your valuable words.