अविरल संघर्ष
कहां जा रहे हम!
जिंदगी को काँधे पर उठाए
बोझ से दबे जा रहे हम
कौन सहारा दे हमें अब
तनहा-तनहा चले जा रहे हम।
थके-थके कदम बढ़ते ही जा रहे
बुझे-बुझे से हम जलते ही जा रहे
कुंठाओं का जहर है पीने को
अपनी प्यास बुझा रहे हम।
बेबसी और लाचारी का साथ है
आंसुओं की जमा पूंजी अपने पास है
मुस्कानों के फूल बिखेरे कोई
सूखी नदियों में बाढ़ ला रहे हम।
Writer: Dr. Shobha Tiwari